ऐसी आँखें नहीं देखी
ऐसी आँखें नहीं देखी
ऐसा काजल नहीं देखा
ऐसा जलवा नहीं देखा
ऐसा चेहरा नहीं देखा
जब यह दामन की हवा दे
आग जंगल में लगा दे
जब यह सहराओं में जाए
रेत में फूल खिलाये
ऐसी दुनिया नहीं देखी
ऐसा मंज़र नही देखी
ऐसा आलम नही देखा
ऐसा दिलबर नहीं देखा
उसके कंगन का खनकना
जैसे बुलबुल का चहकना
उसके पाजेब की छम छम
जैसे बरसात का मौसम
ऐसा सावन नहीं देखा
ऐसी बारिश नहीं देखी
ऐसी रिमझिम नहीं देखी
ऐसी ख्वाहिश नहीं देखी
उसकी बेबाद सी बातें
जैसे सर्दी की हो रातें
उफ़ ये तनहाई ये मस्ती
जैसे तूफ़ान में कश्ती
मीठी कोयल सी है बोली
जैसे गीतों की रंगोली
सुर्ख गालों पे पसीना
जैसे फागुन का महीना
ऐसी आंखें नहीं देखी
ऐसा काजल नहीं देखा
ऐसा जलवा नहीं देखा
ऐसा चेहरा नहीं देखा.........
Sunday, August 16, 2009
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